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ToggleChhath Puja 2025: नहाय खाय, खरना और संध्या अर्घ्य कब हैं? पूरी तिथि, कथा और महत्व जानें
छठ पूजा 2025 में 25 अक्टूबर से 28 अक्टूबर तक मनाया जाएगा. यह चार दिनों का महापर्व है जो भगवान सूर्य और छठी मैया को समर्पित है. मुख्य संध्या अर्घ्य सोमवार, 27 अक्टूबर 2025 को दिया जाएगा.
छठ पूजा के चार दिनों की पूर्ण तिथियां:
पहला दिन – नहाय खाय: शनिवार, 25 अक्टूबर 2025 दूसरा दिन – खरना (लोहंडा): रविवार, 26 अक्टूबर 2025 तीसरा दिन – संध्या अर्घ्य: सोमवार, 27 अक्टूबर 2025 चौथा दिन – उषा अर्घ्य (पारण): मंगलवार, 28 अक्टूबर 2025
अब सवाल यह है कि छठ पूजा की मुख्य तिथि 26 है या 27 अक्टूबर? 26 अक्टूबर को खरना का दिन है जबकि 27 अक्टूबर को मुख्य संध्या अर्घ्य दिया जाता है. इसलिए दोनों ही तिथियां महत्वपूर्ण हैं, लेकिन परंपरागत रूप से 27 अक्टूबर को ही छठ पूजा का मुख्य दिन माना जाता है.
छठ पूजा क्या है और क्यों मनाया जाता है?
छठ पूजा भगवान सूर्य और उनकी पत्नी छठी मैया को समर्पित एक गहरा आध्यात्मिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध हिंदू पर्व है. यह त्योहार प्रकृति के प्रति कृतज्ञता, सूर्य की जीवनदायिनी ऊर्जा और जीवन, स्वास्थ्य एवं समृद्धि के चक्र का प्रतीक है.
छठ पूजा की विशेषताएं:
एकमात्र अनूठी पूजा: यह एकमात्र हिंदू त्योहार है जिसमें सूर्य के उदय और अस्त दोनों की पूजा सख्त नियमों के साथ की जाती है.
पर्यावरण संरक्षण: यह त्योहार प्रकृति, जल और ब्रह्मांडीय ऊर्जा के प्रति भारत की प्राचीन श्रद्धा को दर्शाता है.
सामुदायिक भागीदारी: यह पर्व सामुदायिक प्रार्थना और उत्सव में लोगों को एकजुट करता है.
कठिन तपस्या: भक्त 36 घंटे का निर्जला उपवास रखते हैं, कुछ पानी तक नहीं पीते.
छठ पूजा का इतिहास और पौराणिक कथा
ब्रह्म वैवर्त पुराण में छठ पर्व पर छठी मैया की पूजा का उल्लेख है. इस पर्व से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं.
राजा प्रियव्रत की कथा:
राजा प्रियव्रत संतान न होने के कारण दुखी थे. महर्षि कश्यप ने उन्हें पुत्र के लिए यज्ञ करने की सलाह दी. रानी मालिनी ने पुत्र को जन्म दिया, लेकिन वह मृत पैदा हुआ.
दुखी राजा और रानी ने प्रार्थना की तो आकाश से माता षष्ठी (छठी मैया) प्रकट हुईं. उन्होंने कहा, “मैं माता छठी हूं, देवी पार्वती का छठा रूप. मैं सभी बच्चों की रक्षा करती हूं और संतान की कामना करने वालों को स्वस्थ संतान का आशीर्वाद देती हूं.” देवी ने बालक को जीवन दान दिया.
तभी से छठ पूजा की परंपरा शुरू हुई.
सीता माता और छठ पूजा:
मुंगेर में गंगा के बीच स्थित सीताचरण मंदिर सबसे प्रसिद्ध स्थान है जहां माता सीता ने छठ पूजा की थी. कहा जाता है कि इसी पूजा के बाद छठी मैया ने उन्हें दो स्वस्थ पुत्र लव और कुश का आशीर्वाद दिया.
महाभारत से संबंध:
एक अन्य कथा के अनुसार, द्रौपदी और पांडवों ने अपना खोया हुआ राज्य वापस पाने के लिए छठ पूजा की थी.
पहला दिन: नहाय खाय (25 अक्टूबर 2025)
छठ पूजा के पहले दिन भक्त नदी या तालाब में पवित्र स्नान करते हैं. इस दिन की विशेषताएं:
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नहाय खाय के नियम:
पवित्र स्नान: सुबह गंगा या किसी पवित्र नदी में स्नान करना अनिवार्य है.
घर की सफाई: घर और उसके आसपास के क्षेत्रों को साफ किया जाता है.
शुद्ध भोजन: शुद्ध, सात्विक भोजन तैयार किया जाता है जिसमें प्याज और लहसुन नहीं होता.
एक बार भोजन: इस दिन व्रती केवल एक बार ही पूरा शाकाहारी भोजन करते हैं.
पवित्र रसोई: भोजन बिल्कुल शुद्ध रसोई में बनाया जाता है. रसोई में मांस-मछली या तामसिक भोजन की मनाही होती है.
नहाय खाय के व्यंजन:
- लौकी की सब्जी
- चावल
- चना दाल
- अरवा चावल की खीर
- कद्दू की सब्जी
दूसरा दिन: खरना या लोहंडा (26 अक्टूबर 2025)
खरना छठ पूजा का सबसे महत्वपूर्ण दिन माना जाता है. इस दिन की तैयारी और नियम बहुत सख्त होते हैं.
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खरना की विधि:
निर्जला उपवास: इस दिन सूर्योदय से सूर्यास्त तक बिना पानी का कठोर व्रत रखा जाता है.
शाम का प्रसाद: सूर्यास्त के बाद गुड़ की खीर, रोटी और फल बनाकर सूर्य देव को भोग लगाया जाता है.
व्रत खोलना: सूर्य देव को भोग लगाने के बाद व्रती प्रसाद ग्रहण करके अपना व्रत तोड़ते हैं.
36 घंटे का उपवास शुरू: खरना के बाद से अगले दिन उषा अर्घ्य तक का 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू हो जाता है.
खरना का समय:
- व्रत समाप्ति: सूर्यास्त के बाद (लगभग शाम 5:30 – 6:00 बजे)
- प्रसाद ग्रहण: चंद्रोदय के बाद
खरना का प्रसाद:
गुड़ की खीर: यह खरना का मुख्य प्रसाद है. चावल को गुड़ के साथ पकाकर बनाई जाती है.
रोटी: गेहूं के आटे की रोटी या पूरी.
फल: केला, नारियल, सिंघाड़ा.
घी: शुद्ध देसी घी का इस्तेमाल.
खरना के नियम:
- खीर में दूध का इस्तेमाल नहीं होता, केवल गुड़ और घी
- नमक और मिर्च का प्रयोग वर्जित
- पूजा में मिट्टी के दीपक जलाना जरूरी
- पूरे परिवार को प्रसाद वितरित करना चाहिए
तीसरा दिन: संध्या अर्घ्य (27 अक्टूबर 2025)
तीसरे दिन भक्त नदी किनारे इकट्ठा होकर डूबते सूर्य को अर्घ्य देते हैं. यह छठ पूजा का सबसे भव्य और दर्शनीय दिन होता है.
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संध्या अर्घ्य का समय:
संध्या अर्घ्य: 27 अक्टूबर 2025 को शाम 5:40 बजे
संध्या अर्घ्य की विधि:
नदी किनारे जाना: शाम को व्रती अपने परिवार के साथ नदी, तालाब या घाट पर जाते हैं.
दौरा (सूप) सजाना: महिलाएं पारंपरिक साड़ी पहनती हैं और बांस की टोकरी (सूप) में फल और ठेकुआ भरकर ले जाती हैं.
डूबते सूर्य को अर्घ्य: जल में खड़े होकर डूबते सूर्य को जल अर्पित करते हैं.
छठ गीत: पूरे समय छठ के लोकगीत गाए जाते हैं.
संध्या अर्घ्य का प्रसाद:
ठेकुआ: गेहूं के आटे, गुड़ और घी से बना पारंपरिक मीठा व्यंजन
फल:
- केला
- नारियल
- सिंघाड़ा
- सेब
- संतरा
अन्य सामग्री:
- गन्ना
- नींबू
- अदरक
- हल्दी की गांठ
- पान और सुपारी
दौरा सजावट: दौरे को रंग-बिरंगे कपड़ों, फूलों और दीयों से सजाया जाता है.
सांस्कृतिक महत्व:
इस दिन नदी घाटों पर लाखों की संख्या में श्रद्धालु इकट्ठा होते हैं. पूरा माहौल छठ गीतों, भजनों और आध्यात्मिक ऊर्जा से भर जाता है. यह दृश्य अत्यंत मनमोहक होता है जब हजारों दीये जल रहे होते हैं और सूर्य की अंतिम किरणों में श्रद्धालु अर्घ्य दे रहे होते हैं.
चौथा दिन: उषा अर्घ्य या पारण (28 अक्टूबर 2025)
छठ पूजा का अंतिम दिन जब उगते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत तोड़ा जाता है.
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उषा अर्घ्य का समय:
सूर्योदय अर्घ्य और व्रत तोड़ने का समय: 28 अक्टूबर 2025 को सुबह 6:30 बजे
छठ पूजा तिथि समाप्ति: 28 अक्टूबर 2025 को सुबह 7:59 बजे
उषा अर्घ्य की विधि:
सुबह जल्दी उठना: भक्त सुबह 4-5 बजे उठकर तैयारी करते हैं.
घाट पर पहुंचना: सूर्योदय से पहले नदी किनारे पहुंचना जरूरी है.
उगते सूर्य को अर्घ्य: भक्त उगते सूर्य को अर्घ्य देते हैं और छठी मैया से परिवार की भलाई और समृद्धि के लिए प्रार्थना करते हैं.
प्रसाद वितरण: अर्घ्य देने के बाद प्रसाद परिवार के सदस्यों, दोस्तों और पड़ोसियों में बांटा जाता है, जो आशीर्वाद के बंटवारे का प्रतीक है.
व्रत तोड़ना (पारण): प्रसाद ग्रहण करके 36 घंटे का कठिन व्रत पूर्ण होता है.
पारण का महत्व:
व्रत तोड़ने के बाद घर में उत्सव का माहौल होता है. पूरे परिवार के साथ प्रसाद ग्रहण किया जाता है. इस दिन छठ व्रत की कथा सुनी जाती है और छठी मैया का धन्यवाद किया जाता है.
छठ पूजा में प्रयुक्त प्रमुख सामग्री
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पूजा सामग्री लिस्ट:
फल और सब्जियां:
- केला (कच्चा और पक्का दोनों)
- नारियल
- सिंघाड़ा
- सेब
- संतरा
- नींबू
- अदरक
- हल्दी की गांठ
- गन्ना
अनाज और मिठाई:
- गेहूं का आटा
- चावल
- गुड़
- शुद्ध घी
- ठेकुआ
- खीर
पूजा सामग्री:
- बांस का सूप या दौरा
- मिट्टी के दीये
- कपूर
- अगरबत्ती
- चंदन
- रोली
- पीतल का लोटा
- नया वस्त्र
सजावट सामग्री:
- रंग-बिरंगे कागज
- फूल (मौसमी)
- आम के पत्ते
- केले के पत्ते
छठ पूजा के क्षेत्र और लोकप्रियता
छठ पूजा बिहार और झारखंड का सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है और इसे बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता है. यह मुख्य रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और नेपाल के कुछ हिस्सों में मनाया जाता है.
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प्रमुख स्थान:
बिहार: पटना, गया, भागलपुर, मुंगेर, छपरा, दरभंगा में भव्य आयोजन
झारखंड: रांची, जमशेदपुर, बोकारो में बड़े समारोह
उत्तर प्रदेश: वाराणसी, गोरखपुर, आजमगढ़ में विशेष पूजा
नेपाल: तराई क्षेत्र में बड़े पैमाने पर मनाया जाता है
दिल्ली NCR: यमुना घाट और कृत्रिम घाटों पर हजारों श्रद्धालु इकट्ठा होते हैं
मुंबई, कोलकाता: प्रवासी बिहारियों द्वारा उत्साह से मनाया जाता है
छठ पूजा की बढ़ती लोकप्रियता:
आजकल छठ पूजा केवल बिहार-झारखंड तक सीमित नहीं रही. देश के हर कोने में जहां बिहारी समुदाय रहता है, वहां यह पर्व धूमधाम से मनाया जाता है. विदेशों में भी भारतीय प्रवासी इस त्योहार को मनाते हैं.
छठ पूजा के स्वास्थ्य और वैज्ञानिक लाभ
छठ पूजा को डिटॉक्सिफिकेशन, आध्यात्मिक अनुशासन और पर्यावरण भक्ति का अनूठा मिश्रण माना जाता है.
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शारीरिक लाभ:
सूर्य की ऊर्जा: ऐसा माना जाता है कि यह शरीर को सौर ऊर्जा के साथ संरेखित करता है और भक्तों को प्रकृति की लयबद्ध शक्ति से जोड़ता है.
शरीर की सफाई: कठोर उपवास और सात्विक भोजन से शरीर का डिटॉक्सिफिकेशन होता है.
त्वचा लाभ: सुबह की पहली किरणें विटामिन डी प्रदान करती हैं जो त्वचा और हड्डियों के लिए फायदेमंद हैं.
मानसिक शांति: जल में खड़े होकर पूजा करने से मन को शांति मिलती है.
पर्यावरण के प्रति जागरूकता:
छठ पूजा में जैविक और प्राकृतिक सामग्री का उपयोग होता है. यह पर्व पर्यावरण संरक्षण का संदेश देता है.
छठ पूजा के नियम और सावधानियां
करने योग्य (Do’s):
पवित्रता बनाए रखें: पूजा से पहले और उसके दौरान पूर्ण पवित्रता रखें
सात्विक जीवन: व्रत के दिनों में तामसिक भोजन और गुस्सा त्यागें
प्राकृतिक सामग्री: पूजा में केवल प्राकृतिक और जैविक चीजों का उपयोग करें
परिवार का साथ: पूरे परिवार को साथ लेकर पूजा करें
नदी की सफाई: घाट पर जाने से पहले और बाद में सफाई का ध्यान रखें
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न करने योग्य (Don’ts):
प्लास्टिक का उपयोग: प्लास्टिक की थैली या सामान का उपयोग न करें
नदी को गंदा करना: प्रसाद की पॉलिथीन या प्लास्टिक नदी में न फेंकें
जूता पहनना: घाट पर जूते-चप्पल पहनकर न जाएं
अपवित्र भोजन: व्रत के दौरान मांस-मछली, प्याज-लहसुन से दूर रहें
झूठ या कलह: व्रत के दिनों में झूठ न बोलें और किसी से लड़ाई न करें
छठ पूजा के लोकगीत और संस्कृति
छठ पूजा के समय गाए जाने वाले पारंपरिक गीत इस पर्व की आत्मा हैं. ये गीत भोजपुरी और मैथिली में होते हैं.
प्रसिद्ध छठ गीत:
“केलवा जे फरेला घवद से”: यह सबसे लोकप्रिय छठ गीत है
“उगी हे सूरुज देव”: सुबह के अर्घ्य के समय गाया जाता है
“पटना के घाट पे”: पटना के घाटों का वर्णन
“हो दीनानाथ”: भक्ति और समर्पण का गीत
सांस्कृतिक महत्व:
छठ गीत केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि पीढ़ियों से चली आ रही परंपरा और संस्कृति का माध्यम हैं. ये गीत सूर्य देव की महिमा, प्रकृति के प्रति कृतज्ञता और जीवन के संघर्षों को दर्शाते हैं.
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छठ पूजा के बदलते स्वरूप
आधुनिक युग में छठ:
कृत्रिम घाट: जहां नदी नहीं है, वहां कृत्रिम घाट बनाए जा रहे हैं
टेक्नोलॉजी का उपयोग: लाइव स्ट्रीमिंग से दूर बैठे लोग भी पूजा देख सकते हैं
सरकारी सहयोग: घाटों की सफाई और सुरक्षा के लिए विशेष व्यवस्था
पर्यावरण अभियान: इको-फ्रेंडली छठ पूजा का प्रचार
शहरी क्षेत्रों में छठ:
बड़े शहरों में जहां प्राकृतिक नदी या तालाब नहीं हैं, वहां समुदाय मिलकर अस्थायी घाट बनाते हैं. पार्कों में, खाली मैदानों में कृत्रिम तालाब बनाकर पूजा की जाती है.
छठ व्रत की कथा
पहली कथा – राजा प्रियव्रत:
प्राचीन काल में राजा प्रियव्रत को संतान नहीं थी. महर्षि कश्यप की सलाह पर उन्होंने पुत्रेष्टि यज्ञ किया. रानी मालिनी ने एक पुत्र को जन्म दिया लेकिन वह मृत पैदा हुआ.
दुखी राजा और रानी ने छठी मैया की प्रार्थना की. माता प्रकट हुईं और बालक को जीवनदान दिया. तभी से छठ पूजा की परंपरा शुरू हुई.
दूसरी कथा – कर्ण की कथा:
महाभारत के अनुसार, सूर्यपुत्र कर्ण नियमित रूप से कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य देव की पूजा करते थे. माना जाता है कि छठ पूजा की परंपरा कर्ण से भी जुड़ी है.
तीसरी कथा – माता सीता:
मर्यादा पुरुषोत्तम राम के राज्याभिषेक के बाद माता सीता ने छठ व्रत रखा था. उनकी पूजा से प्रसन्न होकर छठी मैया ने उन्हें पुत्र रत्न का आशीर्वाद दिया.
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छठ पूजा और छठी मैया का महत्व
छठी मैया को प्रकृति और मातृत्व की देवी माना जाता है. वे बच्चों की रक्षा करती हैं और निःसंतान दंपतियों को संतान का वरदान देती हैं.
छठी मैया के नाम:
- षष्ठी देवी
- छठ माता
- चौथी मैया (कुछ क्षेत्रों में)
- संतान माता
छठी मैया की विशेषताएं:
संतान रक्षिका: वे नवजात शिशुओं की रक्षा करती हैं और स्वस्थ संतान का आशीर्वाद देती हैं.
प्रकृति देवी: वे प्रकृति और ब्रह्मांडीय ऊर्जा की प्रतीक हैं.
निराकार रूप: छठी मैया की कोई मूर्ति या प्रतिमा नहीं होती, उन्हें निराकार रूप में पूजा जाता है.
सूर्य की शक्ति: वे सूर्य की बहन या पत्नी मानी जाती हैं और सौर ऊर्जा की अधिष्ठात्री देवी हैं.
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छठ पूजा में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका
छठ पूजा में महिलाओं की केंद्रीय भूमिका होती है. परंपरागत रूप से महिलाएं ही यह व्रत रखती हैं, हालांकि पुरुष भी व्रत कर सकते हैं.
महिलाओं की तैयारी:
कठोर तपस्या: 36 घंटे का निर्जला व्रत महिलाओं की दृढ़ता और समर्पण को दर्शाता है.
परिवार का नेतृत्व: महिलाएं पूरे परिवार को पूजा में शामिल करती हैं और सभी को मार्गदर्शन देती हैं.
पारंपरिक पोशाक: महिलाएं पारंपरिक साड़ी पहनती हैं, जो अक्सर पीले, नारंगी या लाल रंग की होती है.
दौरा सजाना: महिलाएं बांस के दौरे को बहुत सुंदरता से सजाती हैं जो उनकी कला और संस्कृति को दर्शाता है.
पारिवारिक एकता:
छठ पूजा पूरे परिवार को एक साथ लाती है. बेटे-बेटियां अपने माता-पिता के व्रत में सहयोग करते हैं. यह पर्व पारिवारिक बंधन को मजबूत करता है.
छठ पूजा की तैयारी: पूरी चेकलिस्ट
एक सप्ताह पहले की तैयारी:
घर की सफाई: पूरे घर को साफ और पवित्र करें
खरीदारी: पूजा सामग्री और फलों की सूची बनाएं
वस्त्र: नए वस्त्र खरीदें या पुराने को धो लें
दौरा तैयारी: बांस का सूप खरीदें और उसे सजाने का सामान लाएं
तीन दिन पहले:
आटा और गुड़: ठेकुआ बनाने के लिए अच्छी क्वालिटी का गेहूं का आटा और गुड़ लाएं
फल खरीदारी: ताजे और अच्छे फल चुनें
मिट्टी के दीये: पर्याप्त संख्या में दीये और तेल की व्यवस्था करें
परिवार को सूचना: सभी सदस्यों को पूजा के समय की जानकारी दें
एक दिन पहले:
खरना की तैयारी: गुड़ की खीर और रोटी के लिए सभी सामग्री तैयार रखें
ठेकुआ बनाना: एक दिन पहले ठेकुआ बना लें ताकि पूजा के दिन आसानी हो
घाट का चयन: किस घाट पर जाना है, यह तय कर लें
दौरा सजाना: दौरे को फूल, कपड़े और सामग्री से सजाएं
छठ पूजा में बनने वाले विशेष व्यंजन
ठेकुआ बनाने की विधि:
सामग्री:
- गेहूं का आटा – 1 किलो
- गुड़ – 500 ग्राम
- शुद्ध घी – 250 ग्राम
- नारियल (कद्दूकस किया हुआ) – 100 ग्राम
- सौंफ – 2 चम्मच
- इलायची पाउडर – 1 चम्मच
विधि:
- गुड़ को पिघलाकर छान लें
- आटे में घी मिलाएं और अच्छे से भुरभुरा करें
- गुड़ का पानी, नारियल, सौंफ और इलायची मिलाएं
- आटा गूंधें (बहुत सख्त न हो)
- छोटे-छोटे लड्डू बनाकर बेल लें
- गर्म तेल या घी में धीमी आंच पर तल लें
- ठेकुआ सुनहरा भूरा होना चाहिए
गुड़ की खीर (खरना प्रसाद):
सामग्री:
- चावल – 1 कप
- गुड़ – 1 कप (कद्दूकस किया हुआ)
- पानी – 4-5 कप
- शुद्ध घी – 2-3 चम्मच
- नारियल (वैकल्पिक) – 2 चम्मच
विधि:
- चावल को अच्छे से धो लें
- कड़ाही में पानी उबालें
- चावल डालें और पकने दें
- जब चावल पक जाए तो गुड़ मिलाएं
- घी डालें और 5-7 मिनट तक पकाएं
- खीर गाढ़ी होनी चाहिए
नोट: खीर में दूध का उपयोग नहीं होता है.
अन्य पारंपरिक व्यंजन:
चावल का लड्डू: चावल के आटे, गुड़ और घी से बना मीठा व्यंजन
कसार: चावल और दाल से बना नमकीन व्यंजन
चोखा: आलू, बैंगन या टमाटर का चोखा
छठ पूजा में ध्यान रखने योग्य सावधानियां
स्वास्थ्य सावधानियां:
हाइड्रेशन: व्रत से एक दिन पहले खूब पानी पिएं
आराम: व्रत के दौरान अधिक परिश्रम से बचें
बुजुर्ग और गर्भवती महिलाएं: उन्हें कठोर निर्जला व्रत नहीं रखना चाहिए
मधुमेह या BP के मरीज: डॉक्टर की सलाह लें
आपातकालीन तैयारी: व्रत के दौरान यदि तबीयत खराब हो तो तुरंत व्रत तोड़ दें
सुरक्षा सावधानियां:
भीड़ में सावधानी: घाट पर भीड़ होती है, बच्चों और बुजुर्गों का विशेष ध्यान रखें
पानी में सावधानी: जल में उतरते समय सावधान रहें, गहरे पानी में न जाएं
मौसम: ठंड में गर्म कपड़े रखें
सामान की सुरक्षा: अपना सामान संभालकर रखें
छठ पूजा के घाट: भारत के प्रमुख स्थान
बिहार के प्रसिद्ध घाट:
पटना:
- गांधी घाट
- आदमपुर घाट
- महेंद्रू घाट
- दीघा घाट
मुंगेर: सीताचरण मंदिर (ऐतिहासिक और सबसे पवित्र माना जाता है)
गया: विष्णुपद मंदिर के पास फल्गु नदी का घाट
भागलपुर: गंगा नदी के विभिन्न घाट
उत्तर प्रदेश:
वाराणसी: गंगा के विभिन्न घाट
गोरखपुर: रामगढ़ ताल
आजमगढ़: तमसा नदी के घाट
दिल्ली NCR:
दिल्ली: यमुना के किनारे विभिन्न घाट, विशेषकर आईटीओ, कल्याणपुरी, बुराड़ी
नोएडा: नोएडा स्टेडियम में कृत्रिम घाट
गाजियाबाद: हिंडन नदी के घाट
छठ पूजा और पर्यावरण संरक्षण
छठ पूजा प्रकृति पूजा का सबसे शुद्ध रूप है. यह त्योहार हमें पर्यावरण संरक्षण का संदेश देता है.
इको-फ्रेंडली छठ:
प्लास्टिक मुक्त: पूजा में प्लास्टिक का उपयोग पूरी तरह से बंद करें
बायोडिग्रेडेबल सामग्री: केवल प्राकृतिक और बायोडिग्रेडेबल सामग्री का उपयोग करें
नदी की सफाई: पूजा के बाद घाट को साफ करें
जागरूकता: लोगों को पर्यावरण संरक्षण के बारे में जागरूक करें
सरकारी पहल:
कई राज्य सरकारें अब इको-फ्रेंडली छठ पूजा को बढ़ावा दे रही हैं. घाटों पर सफाई अभियान, प्लास्टिक बैन और जागरूकता कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं.
छठ पूजा का आर्थिक प्रभाव
छठ पूजा न केवल धार्मिक, बल्कि आर्थिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है.
व्यापार में वृद्धि:
फल विक्रेता: छठ के समय फलों की मांग कई गुना बढ़ जाती है
मिठाई की दुकानें: ठेकुआ और अन्य मिठाइयों की बिक्री बढ़ती है
कपड़ा व्यवसाय: नए वस्त्रों की खरीदारी होती है
पूजा सामग्री: दौरा, दीये, फूल आदि का व्यापार चरम पर होता है
रोजगार सृजन:
छठ पूजा के दौरान अस्थायी रोजगार के अवसर पैदा होते हैं – घाट सजावट, सुरक्षा, सफाई, परिवहन आदि में.
छठ पूजा में टेक्नोलॉजी का योगदान
आधुनिक युग में टेक्नोलॉजी ने छठ पूजा को और सुलभ बना दिया है.
डिजिटल सुविधाएं:
मोबाइल ऐप: छठ पूजा के समय, विधि और गीतों की जानकारी देने वाले ऐप
ऑनलाइन शॉपिंग: पूजा सामग्री ऑनलाइन खरीदने की सुविधा
लाइव स्ट्रीमिंग: दूर रहने वाले परिवार के सदस्य लाइव देख सकते हैं
सोशल मीडिया: फेसबुक, इंस्टाग्राम पर छठ की तस्वीरें और वीडियो शेयर करना
GPS और मैपिंग:
नजदीकी छठ घाट खोजने के लिए गूगल मैप्स का उपयोग. कई शहरों में सभी छठ घाटों की लोकेशन ऑनलाइन उपलब्ध है.
छठ व्रत के फायदे: आध्यात्मिक और व्यावहारिक
आध्यात्मिक लाभ:
मानसिक शांति: पूजा और व्रत से मन को शांति मिलती है
आत्म-अनुशासन: कठोर नियमों का पालन करने से आत्म-नियंत्रण बढ़ता है
पारिवारिक एकता: पूरा परिवार एक साथ आता है
सकारात्मक ऊर्जा: सामूहिक प्रार्थना से सकारात्मक वातावरण बनता है
व्यावहारिक लाभ:
शरीर की सफाई: उपवास से शरीर का डिटॉक्स होता है
विटामिन D: सूर्य की किरणों से विटामिन डी मिलता है
तनाव मुक्ति: जल में खड़े होकर पूजा करने से तनाव कम होता है
सामाजिक जुड़ाव: समुदाय के साथ मिलकर पूजा करने से सामाजिक संबंध मजबूत होते हैं
छठ पूजा: सामान्य प्रश्न और उत्तर
प्रश्न 1: क्या पुरुष छठ व्रत रख सकते हैं?
हां, पुरुष भी छठ व्रत रख सकते हैं. हालांकि परंपरागत रूप से यह महिलाओं का व्रत माना जाता है, लेकिन कोई भी व्यक्ति यह व्रत कर सकता है.
प्रश्न 2: क्या गर्भवती महिलाएं छठ व्रत रख सकती हैं?
गर्भवती महिलाओं को कठोर निर्जला व्रत नहीं रखना चाहिए. वे फलाहार कर सकती हैं या केवल पूजा में भाग ले सकती हैं.
प्रश्न 3: क्या एक बार छठ व्रत शुरू करने के बाद हर साल करना जरूरी है?
नहीं, यह व्यक्ति की श्रद्धा और स्वास्थ्य पर निर्भर करता है. हालांकि कई लोग हर साल नियमित रूप से व्रत रखते हैं.
प्रश्न 4: अगर पास में नदी न हो तो कहां पूजा करें?
आप किसी साफ तालाब, कृत्रिम घाट या यहां तक कि घर में बड़े बर्तन में पानी भरकर भी पूजा कर सकते हैं.
प्रश्न 5: छठ पूजा में क्या-क्या दान किया जाता है?
पूजा के बाद प्रसाद वितरण, गरीबों को भोजन और वस्त्र दान, ब्राह्मण भोज आदि की परंपरा है.
छठ पूजा की महिमा
छठ पूजा केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि प्रकृति, अनुशासन, परिवार और संस्कृति का अद्भुत संगम है. यह पर्व हमें सिखाता है कि सूर्य की ऊर्जा, प्रकृति की शक्ति और मानव की श्रद्धा मिलकर जीवन को समृद्ध बना सकती हैं.
2025 में छठ पूजा 25 से 28 अक्टूबर तक मनाया जाएगा. यह अवसर है अपनी परंपरा को संजोने, परिवार के साथ समय बिताने और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का.
नहाय खाय (25 अक्टूबर) से शुरू होकर उषा अर्घ्य (28 अक्टूबर) तक का यह सफर आध्यात्मिक और शारीरिक दोनों रूप से शुद्धिकरण का है. इस छठ पूजा में पूरी श्रद्धा और पवित्रता के साथ भाग लें और छठी मैया का आशीर्वाद प्राप्त करें.