आज की कहानी मुन्नी पटेल नाम की सफ़ाईकर्मी के बारें में है. मुन्नी उन सभी के लिए एक सीख हैं जो लोग ये कहते हैं कि हमारे जीवन में बहुत कठिनाईयां और संघर्ष हैं. मुन्नी बचपन से ही एक संघर्षमय जीवन जीती आ रहीं हैं. जब उनकी शादी हुई उसके कुछ ही दिनों बाद उनके पिता गुजर गए. मुन्नी अपने परिवार की सबसे बड़ी बेटी हैं इसलिए उन्ही कंधों पर पूरे परिवार की जिम्मेदारी थी. मुन्नी के दो छोटे भाई-बहन हैं जिनके लिए उन्होनें अपना जीवन का आधा पड़ाव सौंप दिया. मुन्नी अभी 48 साल की हो चुकी हैं.
मुन्नी पटेल भी उन गुमनाम लोगों में से एक हैं जो हम सबकी ज़िंदगी का अहम हिस्सा तो हैं. लेकिन जब लोग इन्हें झाड़ू लगाते देखते हैं तो अछूत मानकर किनारा कर लेते हैं. मुन्नी कहती हैं कि मैं सफाई करती हूं इसके लिए लोग मेरे ऊपर हसते हैं. समाज में हम सफाईकर्मियों की कोई इज्जत नहीं होती है. अगर हमें कहीं खाने के लिए बुलाया जाता है तो हमारे साथ भेदभाव किया जाता है.जबकी हम सफाईकर्मी भी आम इंसानों की तरह ठीक उसी तरह सुबह उठकर लोगों के घरों से निकलने के पहले सफ़ाई में जुट जाती हैं. जिससे आम पब्लिक जब सड़कों पर जांए तो उन्हें कहीं भी गंदगी न दिखे.
मुन्नी के इसी काम से पीएम मोदी खुश हुए हैं. जिसके चलते 26 जनवरी के दिन मुन्नी पटेल को दिल्ली जाकर सम्मान पाने का मौक़ा मिला. लाल क़िले की ख़ास मेहमान तो बन गईं लेकिन अपने शहर लौटकर वही गुमनाम ज़िंदगी जीने लगीं.
दिल्ली में लाल किले पर पीएम मोदी ने गणतंत्र दिवस के दिन झंडा फहराया गया. इस कार्यक्रम में देश के अलग-अलग राज्यों से पहली बार सफाईकर्मी महिलाएं ख़ास मेहमान के तौर पर शामिल हुईं थीं. पीएम के आमंत्रण पर मध्यप्रदेश के 4 निकायों- ग्वालियर, इंदौर, रतलाम और रीवा से 11 महिलाओं को बुलाया गया. जिनमें रीवा से 3 महिलाओं को दिल्ली जाकर सम्मान पाने का मौका मिला. जिन तीन महिलाओं में, मुन्नी पटेल का जीवन संघर्षों से भरा रहा है.
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