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मध्यप्रदेश मुख्यमंत्री का निर्णय पर्यवेक्षकों के ऊपर विंध्य से भी हुई मांग तेज

मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री

भारतीय जनता पार्टी ने हाल ही में राजस्थान, छत्तीसगढ़, और मध्य प्रदेश में हुए चुनावों में बहुमत हासिल किया है और इन राज्यों के मुख्यमंत्रियों की घोषणा का समय अब आ गया है.

इसके साथ ही, बीजेपी ने इन राज्यों के लिए पर्यवेक्षकों के नाम भी घोषित कर दिए हैं. मध्य प्रदेश के लिए हरियाणा के सीएम मनोहर लाल खट्टर को और राजस्थान के लिए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को पर्यवेक्षक बनाया गया है,इस कमेटी में दो और नाम शामिल हैं.जिनमे रांची की मेयर आशा लाकड़ा, और डॉ. के लक्ष्मण को भी पर्यवेक्षक के रूप में भेजा गया है. आशा लाकड़ा किसी बड़े राजनीतिक घराने से न होकर समान्य परिवार से आती हैं. ये विद्यार्थी परिषद की सदस्य रहीं  हैं वहाँ से राजनीतिक सफर शुरू करने वाली आशा लाकड़ा को भेजकर  भाजपा ने  यह संदेश भी दिया है कि मुख्यमंत्री कोई भी बनाया जा सकता है, जब कमेटी में समान्य नाम हो सकता है तो चयन भी सहज हो सकता है.

राजस्थान के लिए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को ऑब्जर्वर बनाने के माध्यम से भाजपा ने विधायकों के बीच से  मुख्यमंत्री के चयन में स्मूथ पॉवर ट्रांसफर की कोशिश की है. मुख्यमंत्री के चयन में सामाजिक इंजीनियरिंग का ध्यान रखकर भाजपा ने विभिन्न जातियों के समर्थन को बनाए रखने का प्रयास किया इससे भाजपा को सभी वर्गों का समर्थन प्राप्त होता दिख रहा है.

इस प्रकार, भाजपा ने तीनों राज्यों में अपने चयनों के माध्यम से सामाजिक समर्थन को बढ़ाने और विभिन्न जातियों के समीकरण को साधने का  प्रयास किया है, जिससे आने वाले चुनावों में भी इसका प्रभाव देखा जा सके.

भाजपा ने राजनीतिक दृष्टि से यह भी ध्यान दिया है कि आगामी लोकसभा चुनाव में विरोधी दल अलग-अलग जातियों, यथा ओबीसी और अन्य वंचित समूहों को अपने मुद्दे में शामिल  कर सकते हैं. इसके लिए, भाजपा ने अपने मुख्यमंत्री और मंत्री चयन के माध्यम से खुद को बेहतर बनाने का प्रयास किया है.

इनका यह प्रयास कितना सफल होगा यह देखने योग्य है, मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री के सम्भावित देवदारों में से एक को चुनना आसान काम नहीं है. जब सामने शिवराज सिंह जैसा नाम भी जुड़ा हो. शिवराज और अन्य विधायक के पुराने सामंजस्य की लम्बी कहानी है. विंध्य प्रदेश की मांग बुलंद करने वाले पूर्व विधायक नारायण त्रिपाठी चुनाव हार चुके हैं. लेकिन उनके द्वारा उठाया गया पृथक विंध्य का मुद्दा अभी भी जीवित है. ऐसे में विंध्य को साधने के लिए भाजपा द्वारा कोई बड़ा निर्णय लिया जाना अपेक्षित है. अपनापंचे कार्यक्रम के द्वारा विंध्य फर्स्ट ने यह जानने का प्रयास किया है कि भाजपा द्वारा की जा रही देरी क्या इशारा करती है इस महत्वपूर्ण चर्चा में शामिल थे बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर डॉ.कौशल किशोर मिश्र और रिपोर्टर स्वर्णिमा सिंह पूरा विवरण जानने के लिए वीडियों जरूर देखें और विचार कमेंट बॉक्स में जरूर बताए.