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Media Scan: 10 दिसंबर की मुख्य खबरों में है क्षेत्र भर में खाद का संकट और प्रदेश में बाघों की मृत्यु के मामले

खरीफ की फसल बोने का समय आ गया है ऐसे में बुवाई की तैयारी के लिए खाद किसानों की एक महत्वपूर्ण जरूरत है लेकिन न सिर्फ रीवा जिले में बल्कि प्रदेश भर में ऐसे मामले देखे जा रहे हैं जहां किसानों को खाद संकट से जूझना पड़ रहा है.जिले में सरकारी सहकारी समितियां जहां से किसानों को खाद मिलती है. वहां खाद की कमी है जिस वजह से किसानों को प्राइवेट दुकानों से खाद खरीदनी पड़ रही है.

इसी बात का फायदा उठाते हुए यह प्राइवेट संस्थान किसानों को दोगुनी तिगुनी लागत में खाद बेच रहे हैं और मजबूरी में किसानों को यह खाद खरीदनी पड़ रही है.साथ ही में इस खाद की क्वालिटी पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं. बताया जा रहा है कि डीएपी, यूरिया नकली मिल रही है.

वहीं छतरपुर से मामला है जहां छात्राएं अपनी पढ़ाई लिखाई छोड़कर खाद लेने के लिए लंबी लाइनों में लगी हुई हैं. अधिकारी कह रहे हैं कि इस बार खाद की कमी है. वहीं लोगों का कहना है कि मात्र दो बोरी खाद मिल रही है. ऐसे में खेती कैसे हो? जिस वजह से परिवार से अन्य लोगों को भी लाइन में लगाया जा रहा है.यह उन लोगों के लिए ज्यादा समस्या का सबब है जिनका परिवार पूरी तरीके से किसानी पर आश्रित है.

मध्य प्रदेश बाघों के लिए जाना जाता है लेकिन बीते समय में प्रदेश में बाघों की स्थिति कुछ सही नहीं रही है. साल 2023 में कुल 38 बाघों की मौत का मामला सामने आया है.राज्य में 6 टाइगर रिजर्व हैं. सबसे ज्यादा मौतों का मामला बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व से सामने आ रहा है.वहीं आधिकारिक रूप से किसी भी तरह का शिकार या करंट से बाघों के मरने की बात सामने नहीं आ रही है.

प्रदेश में 38 बाघों में से 37 के मौत का कारण तक नहीं पता है.प्रदेश भर में जितनी मौतें हुई हैं वो देश भर में बाघों की मौत का एक चौथाई हिस्सा है.

बांधवगढ़ की बात करें तो यहां 12,कान्हा टाइगर रिजर्व में 8,पन्ना में चार, सतपुड़ा में दो,संजय में एक और पेंच टाइगर रिजर्व में एक बाघ की मृत्यु का मामला सामने आया है.प्रदेश भर में 785 बाघ हैं जिनमें से 355 खुले जंगल में हैं.

वन्यजीवों के संरक्षण के लिए काम करने वाले स्वयंसेवियों के मुताबिक खुले जंगल में घूमने वाले बाघ खेतों में लगे करंट वाले तार, छोटे जानवरों के लिए लगाए गए फंदे और शिकारी के हत्थे चढ़ जाते हैं. बाघ के अंगों के लिए भी कटनी,पन्ना और बालाघाट जैसे इलाकों में इनका शिकार होता है. लापरवाही का आलम यह है कि 5 साल में जितने भी बाघ मारे गए हैं उनका एक भी बार डॉग स्क्वायड से सर्च ऑपरेशन नहीं करवाया गया है.

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