Vindhya First

Search

मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री कर्ज का बोझ कैसे उठाएं, कर्जदार प्रदेश का सच

मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री बनने के साथ ही उनको राज्य की बेहतरी के लिए कार्य करना होगा,मध्यप्रदेश को आर्थिक सम्पन्न बनाना होगा. जबकि वर्तमान में चुनावी वादों और घोषणाओं को पूरा करने में प्रदेश कर्ज के बोझ में दबा हुआ है. सवाल यह है कि मुख्यमंत्री कोई भी हो किसी पार्टी के हों वो कैसे कर्ज के बोझ का सामना करेंगे,चुनावी वर्ष में इतना कर्ज लेना कितना उचित है, इस बात पर विचार किया जाना चाहिए,लाडली बहना योजना हो या किसान सम्मान निधि सभी में जारी होने वाली राशि कर्ज लेकर ही हितग्राहियों के बैंक खाते में भेजी गई है. इस विवरण को और बेहतर ढंग से जानने के लिए निम्नलिखित तथ्य पर नज़र दौड़ाए.

मध्यप्रदेश में कर्ज़ की स्थिति:-
मध्यप्रदेश की आर्थिक स्थिति चुनावी घोषणाओं और मुफ्त की रेवड़ी बांटने के चक्कर में बहुत ही कमज़ोर हो गई है. वर्तमान में, प्रदेश का कुल कर्ज लगभग 20081.92 करोड़ रुपए है, जिसमें बाजार से 6624.44 करोड़, अन्य ब्रांड से 14620.017 करोड़, वित्तीय संस्थानों से 14620.017 करोड़, और केंद्रीय सरकार से ली गई एडवांस राशि 52617.991 करोड़ शामिल है. इसके अलावा, 18472.62 करोड़ की अन्य देनदारियां भी हैं और राष्ट्रीय बचत फंड में 38498.01 करोड़ रुपए हैं.

सरकारी योजना में खर्च से बढ़ा कर्ज:-
प्रदेश सरकार ने लाडली बहना योजना के तहत महिलाओं को मासिक ₹1000 से शुरू करके राशि को बढ़ाकर ₹3000 तक पहुंचाने का वादा किया है, जिसके लिए सालाना 19500 करोड़ रुपए का बजट निर्धारित किया गया है. किसान सम्मान राशि को 4 हज़ार से बढ़ाकर 6 हजार कर दिया गया है, जिससे 87 लाख किसानों को लाभ हुआ है और सरकारी खजाने पर 5220 करोड़ रुपए का भार है. आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं की वेतनवृद्धि से सालाना 420 करोड़ रुपए का भार है.

मध्यप्रदेश में कर्ज की वृद्धि साल दर साल :-
2013-14 में हर व्यक्ति पर 10,896 रुपये का कर्ज था, जो 2016 में 13,853 रुपये और 2017 में 21000 रुपये तक बढ़ गया. वर्तमान में, प्रदेश में हर व्यक्ति पर 41000 रुपये का कर्ज है, जो कि गंभीर चिंता का कारण है.

आगामी चुनौतियाँ और सुझाव:-
मध्यप्रदेश को विकसित और समृद्ध बनाने के लिए आगामी वक़्त में कठिनाईयों का सामना करना होगा, सरकार को योजनाओं में हो रहे खर्च को नियंत्रित करने, आर्थिक संकट का समाधान खोजने, और समझदारी से वित्तीय प्रबंधन करने का प्रयास करना चाहिए. इससे न केवल कर्ज की बढ़ती मात्रा को कम किया जा सकता है, बल्कि भविष्य की स्थिति में सुधार हो सकता है और नागरिकों को सुशासन और समृद्धि का अनुभव हो सकता है.

विंध्य फर्स्ट के विशेष कार्यक्रम अपनापंचे के इस एपिसोड में महत्वपूर्ण चर्चा हुई है, इस चर्चा में शमिल रहे अधिवक्ता एवं सामाजिक कार्यकर्ता धीरेश सिंह और रिपोेर्टर स्वर्णिमा सिंह पूरा विवरण जानने के लिए वीडियो जरूर देखें इस मुद्दे से जुड़े अपने विचार भी आप साझा करें और इस चुनौती का सामना करने हेतु अपने सुझाव जरूर बताएं, चैनल को लाइक करें, सब्सक्राइब करें, और बेल आइकन दबाएं और हमें फॉलो करें ताकि आप आने वाली अपडेट्स से जुड़े रहें