मध्य प्रदेश की सरकार बनने में विंध्य क्षेत्र से जब भी समर्थन देने की बात आती है तो विंध्य हमेशा पार्यप्त समर्थन देता आया है. इसे विधानसभा चुनाव 2018 के परिणाम को देखकर भी समझ सकते हैं. इस चुनाव में विंध्य की सर्वाधिक सीटों पर सत्ताधारी दल भाजपा को जीत मिली थी. इसके बाद भी विंध्य को जितना समर्थन सरकार की तरफ से मिलना चाहिए उतना नहीं मिलता इसको भी हम विधानसभा 2018 के मंत्रिमण्डल में विंध्य को मिले स्थान के आधार पर समझ सकते हैं.
इन आंकड़ों में देखते हैं 2018 विधनसभा चुनाव में 30 विधानसभा सीट में 24 सत्तारूढ़ पार्टी को मिली थी. मतलब 80 % का शक्तिशाली समर्थन अकेले विंध्य से मिला था. वहीं मालवा और निमाण क्षेत्र में 66 सीटों में से 29 पर बीजेपी जीती थी लगभग 43.9%. मध्य भारत की 36 सीटों में 23 सीटें बीजेपी को मिली यानी 63.8% समर्थन.
सबसे कम समर्थन देने वाला क्षेत्र रहा ग्वालियर चम्बल इस इलाक़े की 34 सीटों में से केवल 7 सीटें बीजेपी को मिली यानी 20.5% इसके बाद भी सरकार में इस क्षेत्र को ज्यादा स्थान मिला था. महाकौशल की 38 सीटों में से 13 सीटें बीजेपी को मिली यानी 34.2% समर्थन.
बुन्देलखंड की 26 सीटों में से 14 पर बीजेपी थी यानी 53.8% समर्थन इन आंकड़ों से स्पष्ट होता है कि सबसे ज्यादा जन समर्थन और विधायक देने के बाद भी विंध्य के नुमाइंदों को केवल 3 मंत्री और स्पीकर का पद मिला . राजेन्द्र शुक्ल रीवा को मंत्री पद तब दिया गया जब चुनाव सामने था और आचार संहिता लागू होने में कुछ ही दिन बचे थे.
राजेंद्र शुक्ल को अंत में मंत्री बनाने से भी यह स्पष्ट हो गया कि सरकार को भी यह अनुमान था कि विंध्य को कम भागीदारी मिली है. यहाँ बड़ा सवाल यह है कि क्या विंध्य के समर्थन और वोट का महत्व नहीं है. प्रदेश के सबसे बेरोज़गार, सबसे कमजोर क्षेत्र को सरकार में सबसे कम हिस्सेदारी मिले तो कैसे होगा समग्र विकास.
सोचने वाली बात यह भी है कि जो विधायक अपने लिए मंत्री पद ही नही मांग पाए तो क्षेत्र की आवाज क्या बुलंद करेंगे.
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