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जनता के मुद्दे:रोजगार शिक्षा और स्वास्थ्य

विधानसभा चुनाव 2023 मध्यप्रदेश में किसकी सरकार बनेगी इस प्रश्न का उत्तर जनता के साथ ही राजनीतिक पार्टियां भी खोजने में लगी हैं. मध्यप्रदेश में सत्ताधारी दल के मुखिया शिवराज सिंह चौहान ने चुनावी वर्ष में खूब घोषणाएं की हैं. लेकिन ये पूरी कब तक होंगी इसबारे में कोई नहीं बताता. सत्ता द्वारा जनता को लगातार सपने दिखाते हुए लोक लुभावन घोषणा करने से जनता को कितना फ़ायदा या नुकसान यह जानना भी जरूरी है.

राजनीतिक दल के जनप्रतिनिधि लोक लुभावन घोषणा करते वक्त यह नहीं बताते कि इसे लागू करते समय या पूरा करते समय धन राशि कहां से आएगी. मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह के नेतृत्व वाली सरकार ने लगातर कर्ज लेकर राशि वितरण कर अपनी पीठ थप-थपाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. यह कर्ज मध्यप्रदेश के प्रतिव्यक्ति को चुकाना होगा, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष कर देते हुए. भले ही कर्ज के बोझ से चल रही योजना का लाभ आपको मिला हो या न मिला हो.

मध्यप्रदेश में पिछले 18 साल से चल रही सरकार ने बेरोजगारी, गरीबी, पलायन की समस्या के स्थाई हल खोजने के स्थान पर मुफ्त की राशि वितरण कर मतदाता को प्रभावित करने की कोशिश की है. यह कोशिश कहां तक सफल हुई यह तो चुनाव परिणाम आने के बाद पता चलेगा. कुछ राज्यों में इसे मुफ्त की रेवड़ी तो कुछ राज्य में जन कल्याणकारी योजना कहा जाता है.

मध्यप्रदेश में खेती किसानी करने वाले लोग बहुतायत में हैं. खेती को बेहतर करने के लिए क्या किसान सम्मान निधि काफी है? जनता के बीच विचार करने के लिए यह बड़ा प्रश्न है. खेत की सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी और बिजली भी नहीं मिल रही है. विकास के दावे करती सरकार शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधा की बेहतरी में सफल क्यों नहीं हुई?

मध्यप्रदेश की जनता ने 20 साल तक लगातार जिस दल को समर्थन दिया वह व्यवस्थित विकास की योजना क्यों नहीं बना पाया. इसका उदाहरण सड़के बनती हैं, उसके बाद सरकार के प्रतिनिधि को पता चलता है कि अभी तो इसके नीचे पाइप लाइन डलेगी, नाली बनेगी फिर उसी सड़क को तोड़कर दोबारा बनाया जाता है. जो जनप्रतिनिधि क्षेत्र में लगातार सक्रिय होने की बात करते हैं वह अपने क्षेत्र विकास की योजना को सही रूप में लागू क्यों नहीं करवा पाते हैं.

पार्टी के लिए बड़े-बड़े नारे लगाने वाले, सिद्धांत की बात करने वाले जनप्रतिनिधि रातों रात दल बदल करके नए दल में चले जाते हैं. इतनी जल्दी तो नए कपड़े के साथ भी इंसान संयोजन नहीं कर पता, जितनी जल्दी बदले दल में नेतृत्वकर्ता अपने को समायोजित कर लेते हैं.
इन सब के बीच जनता के मूल मुद्दे कहां गायब हो जाते हैं? रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, स्वास्थ्य के लिए लालायित मतदाता की कौन सोच रहा है? क्या लुभावने वादों की मदद से ही जनता को काम चलना होगा या कुछ स्थाई सुधार होंगे? इन सभी प्रश्नों के उत्तर खोजता है अपनापंचे का यह एपिसोड. इस चर्चा में शामिल रहे समाजसेवी लोकतंत्र सैनानी (मीशाबन्दी) अजय खरे रीवा से, सामाजिक कार्यकर्ता उमेश तिवारी सीधी से पूरा विवरण जानने के लिए वीडियो जरूर देखें.