मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव अब अपने अंतिम पड़ाव पर आ गया है. वहीं एजेंसियों द्वारा किए गए सर्वे का एग्जिट पोल जारी किया जा चुका है, जिनमें अलग-अलग तरह के आंकड़े सामने आ रहे हैं.
3 दिसंबर यानी कल जनता का जनादेश सामने आ जाएगा वहीं आखिरी चरण में मतदान और नतीजे की तारीख के बीच एक प्रक्रिया हुई, एग्जिट पोल की.
तमाम मीडिया संस्थाने अपना एग्जिट पोल दिखाने लगीं. यह एग्जिट पोल चुनावी नतीजे का मात्र एक अनुमान होती है, यह बताता है कि मतदाताओं का रुझान किस पार्टी की ओर हो सकता है.
न्यूज चैनल यह तमाम सर्वे एजेंसियों के साथ मिलकर करवाते हैं.
देश में 30 नवंबर 2023 से एग्जिट पोल जनता के सामने आने शुरू हो गए हैं इस बीच आजतक यानी इंडिया टुडे के ऑफिस में बैठी टीम के बीच खुद के एग्जिट पोल पर शंका जताने का वीडियो सोशल मीडिया पर सामने आया. इन्हें अपने ही सर्वे यानी एग्जिट पोल पर आश्चर्य हो रहा है, ऐसे में हम और आप कैसे यकीन कर सकते हैं कि यह नतीजे कितने सटीक होते हैं?
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एग्जिट पोल की प्रक्रिया
कई बार एक्जिट पोल के नतीजे परिणाम से मेल खाते हैं तो कभी बिल्कुल उलट परिणाम देते हैं. ऐसे में एग्जिट पोल की प्रक्रिया को समझते हैं- एग्जिट पोल की प्रक्रिया को समझने के लिए सबसे पहले जानना होगा ओपिनियन पोल के गणित को क्योंकि सारा खेल यहीं से शुरू होता है.
ओपिनियन पोल का शाब्दिक अर्थ है ‘जनता की राय’. ओपिनियन पोल में अलग-अलग माध्यम से जनता की राय जानने की कोशिश की जाती है.
ओपिनियन पोल की प्रक्रिया में रैंडम सेंपलिंग की जाती है. सीएसडीएस जैसी बड़ी एजेंसी भी इसी तरह से सर्वे करती है. यह रेंडम सेंपलिंग सीट, बूथ और मतदाता तीन स्तर पर होती है.
इस रैंडम तरीके की गणित समझिए
किसी मतदान केन्द्र में 1000 लोगों ने अपना मत दिया, 1000 में से 50 लोगों को रैंडम तरीके से चुना जाता है. 1000 में 50 का भाग देने पर 20 आता है. अब वोटर लिस्ट में आधार के लिए ऐसा नंबर चुना जाता है जो 20 से कम हो, अगर 12 नंबर चुना गया तो 12वें नंबर पर जिस मतदाता का नाम होगा उसका इंटरव्यू होगा. अब 12वें नंबर में 20 जोड़कर जो नंबर आएगा उसका इंटरव्यू करते जाएंगे. इस तरह से ओपिनियन पोल तैयार किया जाता है.
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बाकी तरीकों की बात करने से पहले आपको बता दें ओपिनियन पोल की तीन कैटेगरी होती है, प्री पोल, एग्जिट पोल, पोस्ट पोल. अगर आप भी एग्जिट पोल और पोस्ट पोल को एक समझते हैं तो ऐसा नहीं है. ये दोनों अलग-अलग हैं.
चुनाव की घोषणा होने के बाद और मतदान से पहले प्री पोल किया जाता है. मतदान के दिन ही एग्जिट पोल होता है. यानी जब मतदाता वोट देकर बूथ से बाहर निकलता है तब उसकी राय पूछी जाती है. फिर बारी आती है पोस्ट पोल की जिसका सर्वे मतदान के एक, दो या फिर तीन दिन बाद किया जाता है. इसके नतीजे ज्यादा सटीक होते हैं.
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एग्जिट पोल फर्जी साबित हो चुके हैं
प्री पोल और पोस्ट पोल के मुकाबले एग्जिट पोल के नतीजे गलत होने की संभावना ज्यादा रहती है. कई बार एग्जिट पोल फर्जी साबित हो चुके हैं.
साल 2021 के CNX एग्जिट पोल ने बंगाल में बीजेपी को 135 और c वोटर ने 112 सीटें दी थीं लेकिन असलियत में केवल 77 सीटें मिली थीं.
वहीं 2020 में बिहार के एग्जिट पोल में आज तक के एक्सेस माय इंडिया ने आरजेडी-कांग्रेस गठबंधन को 161 सीटें मिली थीं, लेकन जब रिजल्ट आया तो ये गठबंधन 110 सीटों पर सिमट गया
साल 2017 के उत्तरप्रदेश चुनाव में टाइम्स नाउ-VMR के एग्जिट पोल ने सपा को 110 से 130 सीटें मिलने की संभावना जताई थी लेकिन असलियत में यह पार्टी 47 से ज्यादा सीट नहीं जीत पाई.
इसके अलावा भी कई बार ऐसा हुआ है जब एग्जिट पोल के नतीजे गलत साबित हुए.
आखिर एग्जिट पोल के नतीजे गलत कैसे हो जाते हैं
अकसर सर्वे के दौरान रैंडम सैंपलिंग विधि का ठीक से पालन न होने की वजह से ऐसा हो जाता है. जैसे कि सर्वेकर्ता ने तय किया कि 12वें मतदाता से बात करेंगे, उससे बात करते वक्त अगला मतदाता वोट देकर वहां से निकल गया ऐसे में सैंपलिंग गलत हो जाती है.
एग्जिट पोल के गलत होने की दूसरी सबसे बड़ी वजह ये है कि, मतदाता जब वोट देकर निकलता है तो मतदान केन्द्र के बाहर ही अपने वोट का खुलासा नहीं करना चाहता. कई मतदाता पार्टी के लिए प्रतिबद्ध होते हैं, जो खुलेआम अपने मत का खुलासा करते हैं. लेकिन फ्लोटिंग मतदाता और शांत मतदाता इससे बचते हैं. ऐसे मतदाता एग्जिट पोल यानी जब इनके घर जाकर सवाल किए जाते हैं तब सही जवाब देते हैं.
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एग्जिट पोल के गलत होने का तीसरा कारण भी है- सर्वे करने वाले की लापरवाही. अगर वो सही तरीके से अपना काम नहीं करते तो एग्जिट पोल के गलत होने की संभावना बढ़ जाती हैं.
75% ओपिनियन पोल में जीत के दावे सही साबित होते हैं, यदि फॉर्मूले का सही से पालन किया जाए. वहीं 23% एग्जिट पोल में सही सीटों के आकड़े बता पाने का औसत है, जो बेहद कम है. यह भी माना जाता है कि, एजेंसियां देश की आम वोटर तक पहुंच नहीं पाती और वोटर भी अपने मत के बारे में खुलकर नहीं बताते इसीलिए एग्जिट पोल एग्जैक्ट परिणामों के आसपास नहीं पहुंच पाते.