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दलित,आदिवासियों पर बढ़ते अपराधों के पीछे है कुंठित मानसिकता, पुराने ढर्रों से नहीं निकल पा रहा समाज

मध्यप्रदेश देश का वो राज्य है जहां सबसे ज्यादा आदिवासी रहते हैं.21 फीसदी.आदिवासियों की करीब नब्बे जातियां और उपजातियां प्रदेश में रहती हैं इनमें गोंड,भील,सहारिया,बैगा समुदाय के लोग रहते हैं.नैशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो की क्राइम इन इंडिया रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में 2019-21 के बीच आदिवासियों पर सबसे ज्यादा अत्याचार के मामले दर्ज किए गए.

2019 में ये मामले 1922 थे जो दो साल में बढकर 2627 हो गए.ये 36 फीसदी की बढ़ोत्तरी है,राष्ट्रीय औसत 16 फीसदी है.2021 में देश भर में आदिवासियों पर अत्याचार के 8802 मामले सामने आए जिसमें 30 फीसदी मामले मध्यप्रदेश से हैं.यही स्थिति अनुसूचित जाति की है. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के डाटा के अनुसार मध्य प्रदेश में 2021 में अनुसूचित जाति के लोगों के साथ सबसे ज्यादा अपराध हुए हैं.2021 में अनुसूचित जाति के खिलाफ अपराधों का मामला 63.6 प्रतिशत है जबकि राष्ट्रीय औसत 22.6 फीसदी है.

बीते दिनों सीधी जिले के कुबरी गांव से एक मामला प्रकाश में आया जहां एक 40 साल के दलित पर बीजेपी विधायक प्रतिनिधि प्रवेश शुक्ला नें पेशाब किया. आरोपी जेल में है और दशमत का परिवार पुलिस सुरक्षा में. विंध्य फर्स्ट की टीम ने दशमत के गांव पहुंचकर परिवार से बात करी. दशमत की पत्नि आशा का कहना है कि मुझे और मेरे परिवार को पुलिस सुरक्षा की इस जंजीर से मुक्त कर दिया जाए. हम जैसे पहले रहते थे उसी तरह रहना चाहते हैं. सरकार के 6 लाख रुपए से हमारी जिंदगी नहीं कट जाएगी.

जो पैसा मिला भी उससे आधा-अधूरा पक्का मकान बना लिया. अब इस मकान की छपाई तक के लिए पैसे नहीं हैं. दो वक्त की रोटी भी मुश्किल से नसीब हो रही है, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान नें दशमत को नौकरी देने का वादा भी किया था, लेकिन रात गई,बात गई वाली स्थिति हो गई.

दूसरा मामला चुरहट का है,यहां हरिजन सरपंच को गैर कानूनी तरीके से हिरासत में लिया गया,उनकी बर्बरता से पिटाई की गई,जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल किया गया और फर्जी मेडिकल सर्टीफिकेट भी बनाया गया.हमारी टीम नें ग्राउंड पर जाकर जब बात करी तो सरपंच ने सारा वाकया सुनाया जिसे सुनकर और देखकर बर्बरता का अंदाजा लगाया जा सकता है.

पीड़ित नें मामले को लेकर सीधी जिले के एसपी से राष्ट्रपति तक गुहार लगाई लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं की गई.

इन मामलों को मद्देज़र रखकर हमने राजकली पटेल से बात करी जो पूर्व में एससी एसटी समुदाय के लिए कार्य कर चुकी हैं और फिलहाल एक शिक्षिका की नौकरी कर रही हैं. इन्होंने बताया की क्योंकि अब यह समुदाय आगे बढ़ने के लिए संघर्षरत है. पहले से उस जगह पर बैठे हुए लोग कहीं ना कहीं उनसे ईर्ष्या का भाव रखते हैं.

यही, इस क्षेत्र में लंबे समय से काम कर रही नीलू दहिया जी का भी कहना है. उन्होंने उदाहरण देते हुए समझाया कि जिस तरह एक पितृसत्तातमक परिवेश में जब एक लड़की पहली बार अपनी बात सामने रखती है तो यह सामने वाले व्यक्ति को बर्दाश्त नहीं होता और इसका जवाब हिंसा के रूप में भी दिया जा सकता है.

इसी तरह एक ऐसा वर्ग जिसे लंबे समय से दबा कर, कुचल कर रखा गया. जब वो अपनी आवाज सामने रखता है तो उसके साथ इस तरह का बरताव होता है. कानून व्यवस्था के बारे में राजकली जी का कहना है कि कानून बेहतर है लेकिन इसको लागू करने वाले लोग दबाव में काम करते हैं.

नीलू जी ने भी यही कहा कि वह कई बार जब डाटा और प्रमाण देती हैं तो पुलिस वालों में झुठला देने वाला रवैया सामने आता है. न्याय तंत्र इस तरह का है जो समुदाय के लोगों को प्रोत्साहन न देकर निराश कर देता है. चुरहट के हरिजन सरपंच का मामला इसका मात्र एक उदाहरण है. ऐसे कई मामले प्रकाश में आते रहते हैं.

हाशिऐ पर रहने वाले समुदाय को मुख्यधारा से जोड़नें के लिए जरुरी है कि उन्हे सारी मूलभूत सुविधाएं बेहतरी से पहुंचाई जाएं और उनकी राजनीतिक,आर्थिक और सामाजिक भागीदारी सुनिश्चित की जाए.

समुदाय के साथ होता ये अन्याय आजकल का नहीं है बल्कि एक लंबे समय से होता आ रहा है. न जाने कितने समाज सुधारकों नें समूह के उत्थान के लिए संघर्ष किया लेकिन आज भी स्थिति कुछ खास बदली नहीं है.अपराध करने के स्वरूप बदलते जा रहे हैं,लेकिन समस्या जस की तस बनीं हुई है.इसके खिलाफ आवाज उठानी होगी.आदिवासी समाज में संगठन होता है और इस संगठन की शक्ति को आगे लाना होगा.इसमें सरकार को मदद करनी होगी और न्यायतंत्र को बेहद मजबूत करना होगा.

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