जब भी किसी अच्छे खिलाड़ी की बात होती है, तो उसके साथ उसके कोच की बात जरूर होती है. खिलाड़ी की परफॉर्मेंस बताती है कि उसकी शुरुआती नींव कैसी रखी गई है. कोच अगर चाहे तो कम सुविधाओं में भी देश को अच्छे प्लेयर्स दे सकता है. जब भी कोच का नाम आता है तो लोगों को शाहरुख खान की फिल्म ‘चकदे इंडिया’ के कबीर खान की याद जरूर आते है. किस तरह कबीर के सपोर्ट से लड़कियां देश का नाम पूरी दुनिया में रोशान करती हैं. कुछ ऐसी ही कहानी है विंध्य के द्रोणाचार्य एरिल एंथोनी की.
विंध्य से कुलदीप सेन, पूजा वस्त्रकार, ईश्वर पांडे, सौम्य पांडे, नुजहत परवीन जैसे कई बेहतरीन खिलाड़ियों के कोच हैं एरिल एंथोनी. ऐसा भी कह सकते हैं कि विंध्य से इंडियन क्रिकेट टीम तक जब कोई रास्ता जाता है तो वो उसमें कोच एरिल एंथोनी का बड़ा सहयोग होता है. एरिल विंध्य के द्रोणाचार्य के नाम से मशहूर हैं. इनसे क्रिकेट सीखने वाले बच्चे बताते हैं कि जो आर्थिक रूप से मजबूत नहीं होते एरिल उन्हें बिना फीस के ही क्रिकेट की कोचिंग देते हैं.
पहले आईपीएल और फिर इंडियन टीम में सिलेक्ट हुए कुलदीप सेन को भी एरिल ने बिना फीस के ही कोचिंग दी थी. इतना ही नहीं शहडोल की नुजहत परवीन कोचिंग के दौरान कई दिनों तक एरिल के घर पर ही रहीं. अगर बच्चा खेलने में अच्छा हो तो एरिल केवल उसकी फीस ही नहीं माफ करते बल्कि उसे क्रिकेट किट और जूते भी खरीदकर देते हैं. विंध्य फर्स्ट ने एरिल और उनकी एकेडमी में पढ़ने वाले बच्चों से खास बातचीत की.
एरिल से जब उनके होनहार बच्चों के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बड़ी ही सहजता से ये कहते हुए जवाब दिया कि मैंने उन्हें नहीं बनाया, उन्होंने मुझे बनाया है. आज वो बच्चे इंडियन टीम तक पहुँचे तो लोग उनकी वजह से मुझे जानने लगे. विंध्य के द्रोणाचार्य के सवाल को भी एरिल ने ये कहते हुए टाल दिया कि लोग ऐसा कहते हैं लेकिन मैं ऐसा नहीं मानता. मैं द्रोणाचार्य नहीं हूँ. अभी मुझे विंध्य से काफ़ी प्लेयर इंडियन टीम तक पहुँचाने हैं.
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