विंध्य फ़र्स्ट में आज कहानी है रीवा की एक ऐसी जाबाज लड़की रेश्मा की जिंहोंने कुछ ऐसा कर दिखाया है. जिसे देख हर कोई दंग रह जाता है. रेश्मा रीवा ज़िले के कई ऑटो चालकों के बीच अकेली महिला ई-रिक्शा चालक हैं. असल में रेश्मा भी उन तमाम लड़कियों की तरह पढ़ना-लिखना चाहती थीं. लेकिन उनके पिता के पास इतने पैसे नहीं थे कि वो रेश्मा को आगे की पढ़ाई करा पाते. इसलिए वो रेश्मा की शादी कर रहे थे. उनके इस निर्णय से रेश्मा ग़ुस्से में घर छोड़कर ई-रिक्शा चलाने लगी.
रेश्मा का बचपन नागपुर में बीता है. नागपुर से ही रेश्मा की स्कूली शिक्षा पूरी हुई है. रेश्मा 5 बहनें और एक भाई है लेकिन रेश्मा अपने बुआ के साथ रहती थीं. रेश्मा कहती हैं कि मेरे दो माता-पिता हैं जिस तरह से भगवान कृष्ण की जन्म देने वाली मां देवकी थीं लेकिन उन्हे पाल-पोस कर बड़ा करने वाली मां तो यशोदा मां हैं. ठीक उसी तरह से मुझे इतना बड़ा मेरी बुआ ने किया है. जब कई महीने चक्कर लगाने के बाद रेश्मा को नौकरी नहीं मिली तो वो ई-रिक्शा चलाने लगीं.
रेश्मा जब ई-रिक्शा चलाना शुरू की तब उस वक्त उनके सपोर्ट में कोई भी नहीं था. उनके इस निर्णय में उन्हें कई सारी कठिनाईयां भी सामने आई लेकिन रेश्मा उन सभी को दरकिनार करते हुए. उन सबका डट कर सामना करती हैं. रेश्मा के पास खुद का ई-रिक्शा भी नहीं है इसलिए उन्होनें हर दिन के लिए 330 में ई-रिक्शा किराएं से लेकर सुबह 11 बजे से लेकर शाम 6 बजे तक ई-रिक्शा चलाती हैं. फिर उन्हीं पैसों से न केवल अपनी रोज़ी-रोटी चलाती हैं बल्कि अपनी पढ़ाई भी कर रही हैं.
रेश्मा उन तमाम लड़कियों के लिए मसाल हैं जो कहती हैं कि हम लड़की हैं इसलिए ऐसा काम मेरे से नहीं हो पाएगा. रेश्मा कहती हैं कि लड़कियों के भी दो हाथ और दो पैर होते हैं. इसलिए दुनियां का ऐसा कोई भी काम नहीं जो लड़कियां कर न कर सकें.
रेश्मा की संघर्ष भरी कहानी देखने के लिए वीडियो ज़रूर देखें||