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अयोध्या रत्न अवार्ड से सम्मानित शोभा अक्षर की विंध्य फर्स्ट की खास बातचीत

अयोध्या रत्न अवार्ड से सम्मानित

विंध्य अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव सीधी में देश-विदेश की कई हस्तियों ने शिरकत की. इस महोत्सव में कई बड़े दिग्गज कलमकारों ने अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई. विंध्य फर्स्ट की टीम ने इन महान दिग्गजों से खास बातचीत भी की. उसी के तर्ज पर विंध्य फर्स्ट की चर्चा में जुड़ी ‘हंस’ पत्रिका की एसोसिएटेड एडिटर शोभा अक्षर जी. शोभा अक्षर एक स्वतंत्र टिप्पणीकार और कहानीकार के रूप में फेमस हैं. इसके पहले शोभा अक्षर पाखी पत्रिका की बतौर संपादक रही हैं. विंध्य फर्स्ट के साथ चर्चा में उन्होंने साहित्य और कला संस्कृति को लेकर विस्तृत जानकारी दी.

सवाल: आपकी जर्नी कहां से शुरू हुई?

जवाब: मेरा बचपन से ही साहित्य को लेकर अगल ही रुझान था. जब मैं बहुत छोटी थी तभी से मुझे साहित्य से जुड़ने, साहित्य पढ़ने और लिखने का बहुत शौक था. शोभा कहती हैं की मैंने पहले पत्रकारिता से ही शुरूआत की लेकिन मेरा हमेशा से ही साहित्यिक पत्रकारिता की ओर झुकाव था. इस वजह हम साहित्य से जुड़ने के लिए लगातार प्रयास करते रहे, और एक दिन हमें वो मंजिल मिल ही गई. साहित्यिक पत्रकारिता से मेरा सबसे पहला जुड़ाव प्रभास जोशी द्वारा स्थापित ‘पाखी’ पत्रिका से हुआ. पाखी पत्रिका में मैं बतौर संपादक रही. फिर इसके बाद मुंशी प्रेमचन्द की स्थापित पत्रिका ‘हंस’ से मेरा जुड़ना हुआ. जिसकी मैं सहसंपादक हूं. शोभा कहती हैं कि हंस एक ऐसी खिड़की हैं जहां से पूरी दुनियां दिखती है और अब वहीं मेरे लिए जहान है.

सवाल: आज के युवाओं में साहित्य कितना जिंदा है?

जवाब: शोभा कहती हैं कि मैं आज के युवाओं को लेकर बिल्कुल भी नकारात्मक नहीं हूं कि हमारा युवा साहित्य को नीचे गिरा रहा है. बल्की वो युवा ही है जो हमारे देश की साहित्य और संस्कृति को संजो कर रखा है. उनका कहना है कि हमारे देश को आजाद हुए 75 साल हो गए लेकिन आज भी हमारे देश में साहित्य और संस्कृति उतना ही जीवित है जितना की पहले जीवित थी. इसलिए मैं नहीं मानती की आज का युवा वर्ग साहित्य को डूबा रहा है. वो कहती हैं कि आज का युवा ही जो तरह तरह की रचनाएं रचता है जिन रचनाओं के कायल बड़े साहित्यकार हैं.


सवाल: आपको अयोध्या रत्न अवार्ड से नवाजा गया उसके बारे में क्या कहना चाहती हैं. ?

जवाब: अयोध्या रत्न अवार्ड मिलना मेरे जीवन का सबसे खूबसूरत पल था. शोभा कहती हैं की मैं जिस जगह से आती हूं वहां महिलाओं का पत्रकारिता से जुड़ना उस समय बहुत कठिन हुआ करता था. तब वहां का एक बेहद फेमस अखबार जनमोर्चा हुआ करता था. जिसके संपादक शीतला सिंह जी हुआ करते थे. उस समय अयोध्या फैजाबाद की लड़कियों के लिए वो प्रेरणादायक हुआ करते थे. उन्ही के मार्गदर्शन में मैं चलती गई और एक दिन मुझे इस अवार्ड से नवाजा गया.

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