Mppsc 2019 में ओबीसी आरक्षण का मामला 5 सालों से 27% और 14% पर अटका हुआ है, 5 सालों से पीएससी की एक भी नियुक्ति नहीं हुई है.
2018 के विधानसभा चुनाव से शुरुआत हुई
मध्यप्रदेश में ओबीसी आरक्षण कहानी की शुरुआत होती है साल 2018 विधानसभा चुनाव से, कांग्रेस अपने घोषणा पत्र में ओबीसी वर्ग को सरकारी नौकरियों में 27% आरक्षण देने की बात शामिल करती है.
11 दिसंबर 2018 को चुनाव का परिणाम आया, मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनती है, और 1994 रिजर्वेशन एक्ट के तहत ओबीसी वर्ग का आरक्षण 14% से बढ़ाकर 27% करने का अध्यादेश लाती है.
MPPSC परीक्षा 2019 की अटकलें
मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग, लंबे इंतजार के बाद 14 नवंबर 2019 को एमपीपीएससी परीक्षा 2019 के लिए नोटिफिकेशन जारी करता है. एमपीपीएससी के तहत डिप्टी कलेक्टर, डीएसपी सहित 571 प्रशासनिक पदों पर भर्ती की जानी थी. प्रारंभिक परीक्षा की डेट 12 जनवरी 2020 रखी गई. प्रारंभिक परीक्षा का परिणाम 20 दिसंबर 2020 को घोषित हुआ. मुख्य परीक्षा 21 मार्च और 26 मार्च 2021 को कोविड के चलते लेट हुई और इसके नतीजे 31 दिसंबर 2021 को घोषित हुए. इसके बाद 7 अप्रैल 2022 को जबलपुर उच्च न्यायालय ने एमपीपीएससी 2019 के प्रारंभिक और मुख्य परीक्षा परिणाम को रद्द कर दिया.
न्यायालय द्वारा एमपीपीएससी 2019 के लिए घोषित आरक्षण से संबंधित नियमों के विरुद्ध दायर याचिका पर फैसला सुनाया गया. साथ ही उच्च न्यायालय ने आयोग को आदेश दिया कि इन परीक्षाओं के लिए फिर से नतीजे की घोषणा करें जो कि पुराने नियमों के आधार पर हो.
MP में आरक्षण नियमों में संशोधन
मध्य प्रदेश राज्य सरकार द्वारा राज्य व अन्य सेवाओं में आरक्षण से संबंधित नियमों में 17 फरवरी 2020 को संशोधन किया गया था.
यह नियम लंबे समय तक विवादित रहा और कोर्ट में इसे लेकर चुनौती दी गई इसके बाद उच्च न्यायालय ने यह फैसला लिया.
16 फरवरी 2022 को एमपी हाई कोर्ट ओबीसी रिजर्वेशन को लेकर आदेश जारी करती है.
जिसमें 14 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण न देने का निर्देश देती है.
क्या हुआ मध्य प्रदेश सरकार का
15 सालों के बाद कांग्रेस की बनी कमलनाथ सरकार, 15 महीनों में ही गिर जाती है. और 20 मार्च 2020 को भाजपा फिर से सत्ता में आ जाती है. ये वो पीरियड था, जब कांग्रेस सरकार और आयोग द्वारा राज्य व अन्य सेवाओं में आरक्षण संबंधित नियमों का संशोधन किया जा चुका था. और जब एमपीपीएससी 2019 के प्रीलिम्स का रिजल्ट भी नहीं जारी हुआ था.
मसला हल होने के बजाय उलझता गया
सितंबर 2022 तक मामला हल होने की कगार पर आया, दायर याचिकाओं पर हाईकोर्ट में पेटीशनर्स के एडवोकेट की बहस को रिकॉर्ड कर लिया गया, अब बारी आई मध्य प्रदेश सरकार की, यानी भाजपा की, शिवराज सरकार की.
कांग्रेस सरकार का लाया अध्यादेश अब भाजपा के गले की हड्डी बन चुका था. शिवराज सरकार ने गेंद सुप्रीम कोर्ट के पाले में फेंक दी.
मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार ने हाई कोर्ट में ये कहा कि, आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं पेंडिंग पर है, यह मामला भी वहीं हल होगा.
सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों में आरक्षण की सीमा तय की
सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने इंदिरा साहनी की याचिका पर 1992 में ऐतिहासिक फैसला सुनाया. जिसमे आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 % तय कर दी. इस फैसले में कोर्ट ने ओबीसी वर्ग के लिए 27 % रिजर्वेशन को जायज ठहराया था.
ये फैसला इसलिए भी ऐतिहासिक माना गया, जिसने जातिगत आरक्षण की लिमिट तय कर दी. राजनीतिक कारणों से रिजर्वेशन बढ़ता ही जा रहा था. इस फैसले को 9 जजों की बड़ी बेंच ने दिया था, फैसले के बाद कई बार इस फैसले पर पुनर्विचार करने की मांग की गई, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस पर पुनर्विचार करने से इंकार कर दिया.
देश में राज्यों ने 50 प्रतिशत सीमा को लांघा
कुछ राज्यों ने इसके बाद भी 50 % रिजर्वेशन लिमिट को पार किया है. तमिलनाडु में तो सामान्य और क्रीमी लेयर के नाम पर 69 % का आरक्षण है.
इधर, मध्यप्रदेश सरकार ने सरकारी नौकरियों में ओबीसी वर्ग को 27 % आरक्षण लागू किए जाने का प्रावधान कर चुका है, जिससे मध्यप्रदेश में पहले से लागू आरक्षण का प्रतिशत 73 % हो गया है.
युवाओं को आज भी है जजमेंट का इंतजार
मध्य प्रदेश के युवा जिन्हें जजमेंट का इंतजार था, वह 2019 से लेकर आज तक अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं.
आरक्षण को लेकर रिट पिटीशन नंबर 5901 के साथ 65 याचिकाएं दायर हैं.
इस मसले को आज 4 साल हो गए हैं.
अंजाम तक पहुंचाने के बजाय उलझनों की खिचड़ी बन गई है.
ऐसे में सवाल उठता है कि, भाजपा सरकार ने इसे सुलझाने का कोई प्रयास नहीं किया, या यूं कहें, सरकार ओबीसी आरक्षण 27 प्रतिशत मामले को, सुलझाना ही नहीं चाहती.
एमपीपीएससी के वो तमाम पीड़ित अभ्यर्थी 90% युवा है. जो सरकार की राजनीति का शिकार हुए हैं.
ये पूरा खेल वोट बैंक का है. भाजपा सरकार ने केवल अपने वोट बैंक को बचाने के लिए लाखों युवाओं के भविष्य को अधर मे लटका दिया है.
आइए, समझते हैं, कैसे
OBC मध्य प्रदेश में सबसे बड़ा मतदाता ब्लॉक है.
पिछले 19 सालों में 3 ओबीसी मुख्यमंत्री रहे हैं, 2003 में उमा भारती, फिर बाबूलाल गौर और वर्तमान में शिवराज सिंह चौहान (ये सभी भाजपा के नेता) शामिल हैं.
मप्र. पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक रिपोर्ट पेश की. रिपोर्ट के मुताबिक, MP में ग्वालियर-चंबल, बुंदेलखंड, विंध्य और मध्य MP क्षेत्रों में सबसे अधिक 51 % OBC मतदाता हैं. प्रदेश की कुल 230 विधानसभा सीटों में से 100 से अधिक OBC वोटों से तय होती हैं.
जो 20 सालों से काफी हद तक भाजपा के पक्ष में रहा है. लेकिन 2018 के चुनाव में, OBC वोट बैंक कांग्रेस की ओर भी काफी संख्या में ट्रांस्फर हो गया था.
ओबीसी आरक्षण का पेंच केवल वोटबैंक की राजनीति
अब मध्य प्रदेश में भाजपा सरकार की आंखों के सामने 2023 का विधानसभा चुनाव है, ऐसे में अगर सरकारी नौकरियों में न्यायालय द्वारा 27% आरक्षण के पक्ष में फैसला आता तो इससे भाजपा की वोट पर असर पड़ता.
एक तो कांग्रेस हावी हो जाती कि यह उनका लाया हुआ अध्यादेश था और इसका क्रेडिट खुद ले लेती.
वहीं मध्य प्रदेश का सामान्य वर्ग का वोटर नाराज हो जाता.
वहीं दूसरा पक्ष, ओबीसी वर्ग को 14% आरक्षण देकर मामला सुलझाया जा सकता था, लेकिन यहां भी वोट बैंक के खातिर भाजपा ने मामला रोक कर रखा.
यदि 14% ओबीसी वर्ग को आरक्षण मिलता तो, फिर भी कांग्रेस हावी हो जाती कि भाजपा की सरकार ओबीसी वर्ग को आरक्षण देना ही नहीं चाहती. और जातिगत जनगणना की मांग से तो आप वाकिफ ही हैं.
साथ ही मध्य प्रदेश के 51% आबादी वाले ओबीसी वोटर नाराज हो जाते, और भाजपा का वोट बैंक घट जाता.
सरकार ने लाखों युवाओं का भविष्य तबाह कर दिया
राजनीति के इस कुचक्र में देखा जाए तो, केवल प्रदेश का युवा मारा जा रहा है, और सरकार को केवल अपने वोट बैंक की चिंता ही रही है. जहां काफी पहले ही मसले को भाजपा सरकार सुलझा सकती थी, वहीं वोट के खातिर लाखों युवाओं का भविष्य तबाह कर दिया गया है. आपको मालूम है, मध्य प्रदेश में विगत 5 सालों से पीएससी की कोई नियुक्तियां नहीं हुई हैं. सालों साल युवा तैयारी करते हैं और उनकी तैयारी राजनीति की भेंट चढ़ जाती हैं.
अब चाहे व्यापम घोटाला हो, या एमपीपीएससी, सरकार की नजर में युवा कहां है.