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बघेली के मशहूर कवि सरस जी की मजेदार कविताएं

बघेली के मशहूर कवि

विंध्य अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल में देश-विदेश की कई नामी हस्तियों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई. इस महोत्सव में विंध्य क्षेत्र के कई जाने-माने कलाकारों ने भी अपनी कलाकारी का रंग बिखेरते हुए दिखाई दिए. इसी बीच विंध्य फर्स्ट की टीम ने कुछ लोगों से खास बातचीत की जहां पर कई सारी बातें सामने आई.
विंध्य क्षेत्र की लोकभाषा बघेली बोली के मशहूर कवि डॉ. शिवशंकर मिश्रा ‘सरस’ अपनी बघेली कविता के माध्यम से विंध्य क्षेत्र का नाम विंध्य में ही नहीं बल्कि समूचे देश-विदेश में विंध्य की मातृ भाषा नाम उजागर कर रहे हैं.

उनकी कविताएं यहां के संस्कृत और कला को संजोती हैं. सरस जी कहते हैं कि हमारे विंध्य क्षेत्र कला और संस्कृति भरा हुआ है. खासतौर पर सीधी जिला लोककलाओं का गढ़ माना जाता है. यहां के लोग अपनी कला को देश के हर कोने में बिखेर रहे हैं.

इन्ही सब के बीच उन्होनें बातचीत के दौरान अपनी स्वरचित कविताएं भी सुनाई. सरस जी की कविताएं बेहद मनोरंजक होने के साथ-साथ ओज पूर्ण भी होती हैं. सरस जी की कविताएं लय और तुक से परिपूर्ण होती हैं. उनकी कविताएं राजनेताओं के ऊपर भी होती हैं. नेताओं के आचरण और व्यवहार को देखकर वो अपने मन में कविता की रचना कर लेते हैं. जैसे- ‘बैर बांधे है गांस बांधे है मोका पाईस ता पेल दिहिस’.
इस तरह की कई सारी कविताओं से उन्होंने विंध्य क्षेत्र की अपनी बोली बघेली का पूरे देश में रोशन किया है.
सरस जी कहते हैं कि सीधी के साथ-साथ समूचे विंध्य की लोककलाओं को उभारने में इस फ़िल्म महोत्सव का सबसे बड़ा योगदान है. इस महोत्सव के माध्यम से यहां के युवा अपनी-अपनी कलाओं लोगों तक पहुंचाते हैं. वो कहते हैं कि बघेली बोली हमारी मातृ भाषा हमें इसमें प्रयास करना चाहिए कि ये दूर-दूर तक लोगों के पास पहुंचे.

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